आजकल सोशल मीडिया, खासकर X, पर कुछ भी ट्रेंड कर जाता है. कभी ‘टमाटर के दाम’ तो कभी ‘मीम फ़ेस्ट’. लेकिन पिछले कुछ समय से एक ऐसा हैशटैग टॉप पर दिख रहा है, जिसने आम जनता को सीधे देश की रक्षा और तकनीकी आत्मनिर्भरता के मुद्दे से जोड़ दिया है: #FundKaveriEngine।
जी हां, आपने सही पढ़ा. ये किसी नई फ़िल्म का प्रमोशन नहीं, किसी सेलेब्रिटी का जलवा नहीं, बल्कि भारत के दशकों पुराने एक जेट इंजन प्रोजेक्ट ‘कावेरी’ को फंड करने की मांग है. लोग अपनी तरफ से सरकार पर दबाव बना रहे हैं, ताकि हमारा अपना स्वदेशी फाइटर जेट इंजन बन सके. लेकिन ये सब हो क्यों रहा है? कौन हैं ये लोग जो ट्विटर पर ‘इंजन’ की बात कर रहे हैं? और क्या है इसके पीछे की असली कहानी?
आइए, टपोरी चौक के अंदाज़ में, सीधी बात करते हैं, और ट्विटर की ट्रेंडिंग लिस्ट से निकलकर, कावेरी इंजन के ‘ग्राउंड रियलिटी’ तक पहुंचते हैं.

#FundKaveriEngine: ‘देसी इंजन’ के लिए जनता की आवाज़
पिछले कुछ दिनों से ट्विटर/X पर #FundKaveriEngine हैशटैग लगातार दिख रहा है. इसमें हज़ारों लोग ट्वीट कर रहे हैं, सरकार से मांग कर रहे हैं कि कावेरी इंजन परियोजना को तेज़ किया जाए और उसे पर्याप्त वित्तीय सहायता दी जाए. ये सिर्फ एक हैशटैग नहीं है, बल्कि देश के अंदर रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और स्वदेशी तकनीकी विकास की गहरी इच्छा का प्रतीक है.
क्यों उठ रही है ये आवाज़?
इस ट्रेंड के पीछे कई कारण हैं, जो सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि भावनात्मक और रणनीतिक भी हैं:
- विदेशी निर्भरता का दर्द: भारत ने अपना ख़ुद का शानदार फाइटर जेट ‘तेजस’ तो बना लिया है. ये एक बड़ी उपलब्धि है. लेकिन इसका ‘दिल’ यानी इंजन अभी भी अमेरिकी GE F404 या F414 है. जब लोग इस बात को समझते हैं कि हमारा विमान तो देसी है, लेकिन उसका इंजन परदेसी है, तो कहीं न कहीं एक कसक उठती है. लोग चाहते हैं कि अब इंजन भी हमारा अपना हो.
- आत्मनिर्भर भारत का सपना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा दिया है. रक्षा क्षेत्र इसमें सबसे महत्वपूर्ण है. लोग सोचते हैं कि जब हम मिसाइलें बना सकते हैं, पनडुब्बियां बना सकते हैं, अपना एयरक्राफ्ट कैरियर बना सकते हैं, तो एक जेट इंजन क्यों नहीं? ये ट्रेंड इसी ‘आत्मनिर्भरता’ की भावना को हवा दे रहा है.
- रणनीतिक सुरक्षा का सवाल: इंजन के लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर रहने का मतलब है, उनकी शर्तों पर चलना. भू-राजनीतिक तनाव या प्रतिबंधों की स्थिति में विदेशी इंजन की सप्लाई रुक सकती है. ऐसे में हमारी वायुसेना को दिक्कत हो सकती है. #FundKaveriEngine के समर्थक जानते हैं कि स्वदेशी इंजन का मतलब है रणनीतिक सुरक्षा और कोई हमें ‘ना’ नहीं कह पाएगा.
- लागत और ‘मेक इन इंडिया’ की उम्मीद: विदेशी इंजन खरीदना अरबों डॉलर का महंगा सौदा है. अगर भारत अपना इंजन खुद बनाता है, तो न केवल बहुत सारा पैसा बचेगा, बल्कि देश के अंदर रोज़गार पैदा होंगे, इंजीनियरिंग और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा मिलेगा. ये सीधे-सीधे ‘मेक इन इंडिया’ से जुड़ा मामला है.
- सोशल मीडिया की ताकत: आज के दौर में सोशल मीडिया एक बड़ा मंच है. लोग अपनी आवाज़ उठाने, सरकार तक अपनी बात पहुंचाने और बड़े मुद्दों पर जनमत तैयार करने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. #FundKaveriEngine इसी का एक जीता-जागता उदाहरण है. डिफेंस एंथुज़ियास्ट, तकनीकी विशेषज्ञ और आम नागरिक, सब मिलकर इस मुद्दे को हाईलाइट कर रहे हैं.
कावेरी इंजन: एक ‘आदर्श बेटा’ जो थोड़ा भटका, लेकिन उम्मीद बाकी है
अब बात करते हैं उस इंजन की, जिसके लिए ये सारा शोर मच रहा है. कावेरी इंजन की कहानी आज की नहीं, बल्कि 1986 की है. तब DRDO (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) के तहत आने वाली GTRE (गैस टरबाइन रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट) को तेजस फाइटर जेट के लिए एक स्वदेशी इंजन बनाने का ज़िम्मा मिला था.
क्यों अटका था कावेरी का विकास?
कावेरी का विकास आसान नहीं था. ये बच्चा पैदा होते ही ‘बीमार’ हो गया, और इसे पालने में कई ‘बाधाएं’ आईं:
- ‘कमज़ोर दिल’ और ‘भारी शरीर’: तेजस को जितनी शक्ति (थ्रस्ट) चाहिए थी, कावेरी इंजन उतनी दे नहीं पा रहा था. ऊपर से, इसका वज़न भी तय सीमा से ज़्यादा था. फाइटर जेट को तो एकदम फिट एंड फाइन होना चाहिए, लेकिन कावेरी का ‘दम’ और ‘वज़न’ दोनों ने समस्या पैदा की.
- सामग्री की कमी और टेस्टिंग का पंगा: जेट इंजन बहुत ऊंचे तापमान पर काम करते हैं. इसके लिए खास किस्म की धातुओं और मैटेरियल्स की ज़रूरत होती है, जो उस समय भारत में आसानी से उपलब्ध नहीं थीं. साथ ही, इंजन को टेस्ट करने के लिए हाई-टेक सुविधाएं भी हमारे पास नहीं थीं, इसलिए रूस जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ा.
- फंडिंग और अंतर्राष्ट्रीय ‘पचड़े’: प्रोजेक्ट को शुरुआत में जितनी फंडिंग चाहिए थी, उतनी नहीं मिली. फिर 1998 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किए, तो दुनिया के कई देशों ने प्रतिबंध लगा दिए, जिससे विदेशी तकनीक और पुर्जे मिलने में दिक्कत आई.
इन सब कारणों से, 2008 में कावेरी को तेजस से ‘अलग’ कर दिया गया. ये ऐसा था जैसे स्कूल में बच्चे को दूसरे सेक्शन में डाल दिया जाए, क्योंकि वो सिलेबस के हिसाब से फिट नहीं बैठ रहा था.
कावेरी का नया अवतार: ‘ड्रामेबाजी’ नहीं, ‘उद्देश्यपूर्ण’ है!
भले ही कावेरी तेजस में नहीं लग पाया, लेकिन DRDO ने इसे पूरी तरह छोड़ा नहीं. उन्होंने सोचा, चलो, ‘मछली’ पकड़ने में दिक्कत हो रही है, तो ‘मगरमच्छ’ (ड्रोन) पर ट्राई करते हैं.
अब कहां इस्तेमाल हो रहा है कावेरी?
- घातक UAV (DRDO Ghatak UCAV): कावेरी का एक हल्का वर्जन (ड्राई वेरिएंट, बिना आफ्टरबर्नर के) अब भारत के स्वदेशी स्टील्थ ड्रोन ‘घातक’ के लिए विकसित किया जा रहा है. ये ड्रोन हवा में दुश्मनों की नाक में दम करेगा, और इसका इंजन कावेरी होगा.
- नौसेना के जहाज़ों के लिए: कावेरी के कोर का इस्तेमाल करके नौसेना के जहाज़ों के लिए भी एक गैस टरबाइन इंजन बनाया गया है. यानी, अब ये समंदर में भी ‘गरज’ रहा है.
- टेक्नोलॉजी का ‘खजाना’: सबसे बड़ी बात ये है कि कावेरी ने भले ही तेजस में जगह न बनाई हो, लेकिन इसने भारत को जेट इंजन बनाने का अमूल्य अनुभव दिया है. ‘सिंगल-क्रिस्टल ब्लेड टेक्नोलॉजी’, ‘एडवांस्ड मटीरियल्स’ और ‘डिजिटल इंजन कंट्रोल’ जैसी चीज़ों में भारत ने बहुत कुछ सीखा है. ये ज्ञान भविष्य के ज़्यादा शक्तिशाली इंजनों की नींव है.
#FundKaveriEngine: क्या ये ‘पॉलिटिकल प्रेशर’ है या ‘देशभक्ति का उफान’?
अब फिर से ट्विटर पर आते हैं. लोग #FundKaveriEngine के ज़रिए एक साथ क्या कह रहे हैं?
- सरकार को जगाना: लोग चाहते हैं कि सरकार इस प्रोजेक्ट को गंभीरता से ले, सिर्फ़ भाषणों में नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर पैसे और संसाधन देकर.
- तेज़ विकास की मांग: दशकों से चल रहे इस प्रोजेक्ट को अब तेज़ी से पूरा करने की ज़रूरत है, ताकि हम विदेशी इंजनों पर निर्भरता कम कर सकें.
- भविष्य की सुरक्षा: चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों को देखते हुए, भारत को अपनी रक्षा क्षमताएं मज़बूत करनी होंगी. स्वदेशी इंजन इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
हाल ही में, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी स्वदेशी जेट इंजन के विकास पर ज़ोर दिया था और इसके लिए अतिरिक्त फंड की बात कही थी. यह बताता है कि सरकार भी इस मुद्दे की गंभीरता को समझ रही है. फ्रांस की Safran जैसी कंपनियों के साथ भी तकनीक साझा करने पर बातचीत चल रही है, ताकि कावेरी को और बेहतर बनाया जा सके.
तो बात ये है…
कावेरी इंजन की कहानी सिर्फ़ लोहे के एक टुकड़े की नहीं, बल्कि भारत के आत्मसम्मान और रणनीतिक भविष्य की है. ये बताता है कि हम सिर्फ ‘खरीदने वाले’ नहीं, बल्कि ‘बनाने वाले’ भी बनना चाहते हैं. #FundKaveriEngine जैसा ट्रेंड दिखाता है कि जनता भी अब इन मुद्दों को समझ रही है और अपनी सरकार से अपेक्षाएं रख रही है.
अब देखना ये है कि क्या इस ‘जनता की आवाज़’ और सरकारी प्रयासों का मेल कावेरी इंजन को वो उड़ान दे पाएगा, जिसके लिए दशकों से इंतज़ार हो रहा है. क्योंकि जब तक हमारे फाइटर जेट्स का ‘दिल’ भी भारतीय नहीं होगा, तब तक हमारी ‘आत्मनिर्भरता’ की कहानी अधूरी रहेगी. बाकी, आप क्या सोचते हैं, कमेंट में बताइए!
Google DSC के डेवलपर कम्युनिटी को लीड कर चुके शिवम सैंकड़ो लोगों को गूगल क्लाउड, web एवं एंड्राइड जैसी तकनीकों में प्रशिक्षण दे चुकें हैं. तकनिकी छेत्र में शिवम को महारत हासिल है. वे स्टार्टअप, सोशल मीडिया एवं शैक्षणिक विषयों पर टपोरी चौक वेबसाइट के माध्यम से जानकारियां साझा करतें हैं. वर्तमान में शिवम एक इंजिनियर होने के साथ साथ गूगल crowdsource के इन्फ्लुएंसर, टपोरी चौक एवं सॉफ्ट डॉट के संस्थापक इसके अलावा विभिन्न स्टार्टअप में भागीदारी निभा रहें हैं.