बढ़ती जनसंख्या की समस्या पर निबंध | Essay On Population In Hindi

बढ़ती जनसंख्या की समस्या से सभी त्रस्त है। क्योकि विश्व में सिमित संसाधन है जिनका उपयोग करने वालो की तादाद दिन प्रति दिन बढती जा रही है। आने वाले समय में बढती जनसँख्या के प्रति लोगो को जागृत करने हेतु जनसँख्या पर निबंध निश्चय ही सहायक सिद्ध होगा।

"जनसँख्या वृद्धि की समस्या " written on white background with a animated photo of globe

बढ़ती जनसंख्या की समस्या पर निबंध | Essay On Population In Hindi

इस देश की बढ़ती हुई जनसंख्या बढ़ती हुई दुश्चिन्ता की तरह फैलती जा रही है। यों तो पूरे विश्व में जनसंख्या की दर जिस रफ्तार से बढ़ रही है, उससे विश्व क्षितिज पर युद्ध की आशंकाओं का मँडराना तथा इस तनाव से नयी-नयी समस्याओं का पैदा होना लाजिमी है। यह हैरतअंगेज बात है कि अन्य देशों में जनसंख्या से निपटने के लिए जहाँ जनसंख्या की बाढ़ को रोकने तथा बढ़ी हुई जनसंख्या को रोजगार से जोड़ने के उपाय किये जाते हैं, वहीं हमारे यहाँ की सरकार एवं उसके अर्थशास्त्री हाथ-पर-हाथ धरे, आंख और मुह फाड़कर जनसंख्या की बाढ़ को सिर्फ देखते रहते हैं। इसीलिए इस देश में जनसंख्या वृद्धि मात्र समस्या नहीं है, बल्कि अनेक समस्याओं की जन्मदात्री भी है।

जनगणना में सामने आया बड़ा आंकड़ा

1981 ई० की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी में पिछले दशक में 13 करोड़ 56 लाख 51 हजार 199 की वृद्धि हुई है।

आबादी की दृष्टि से भारत विश्व का दूसरा बड़ा देश है। 1967 ई० में चीन की आबादी 72 करोड़ थी। 1985 ई० में इसकी आबादी 90 करोड़ को पार कर चुकी रहेगी। भारत और चीन, दोनों देशों की कुल आबादी को यदि मिला दिया जाय जो कि लगभग डेढ़ अरब हो जाती है, तो यह जनसंख्या पूरे विश्व की जनसंख्या की एक-तिहाई हो जाती है।

आजादी के बाद से भारत की जनसंख्या में करीब 33 करोड़ की वृद्धि हुई है, जो कि सोवियत रूस की कुल जनसंख्या से भी अधिक है। यहां स्मरणीय है कि रूस का क्षेत्रफल भारत से छह गुना अधिक है। प्रतिवर्ष भारत की जनसंख्या में जो वृद्धि होती है, वह आस्ट्रेलिया की पूरी जनसंख्या के बराबर होती है जबकि आस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल से ढाई गुना ज्यादा है।

पिछली जनगणना की रपटों से यह स्पष्ट हो गया है कि परिवार नियोजन जैसे कार्यक्रम बहुत कामयाब नहीं हो सके हैं। इसीलिए तो आजादी के बाद के 37 वर्षों में आबादी दुगुनी से भी अधिक हो गयी है। जनसंख्या वृद्धि का यदि यही सिलसिला चालू रहा तो दो हजार ई० में यह संख्या लगभग 1 अरब हो जायेगी । दूसरी बात, बाल-विवाह प्रथा पर रोक लगाने से भी जन्मन्दर में कोई कमी नहीं आयी है। एक सर्वेक्षण के अनुसार उत्तरप्रदेश में 1971 ई० में जो लड़कियां विवाहित हुई थीं, उनमें से 52 प्रतिशत की उम्र 15 साल से कम थी।

बेरोजगारी और जीवनस्तर में गिरावट

जनसंख्या की बाढ़ से उत्पन्न चिता केवल भारतीय समाज को ही नहीं छूती बल्कि विश्व समुदाय को भी अपनी गिरफ्त में लपेटती है। जनसंख्या का बढ़ना तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस पर नियन्त्रण लगाने के उपाय अवश्य होने चाहिए प सिर्फ नियन्त्रण लगाना तो समस्या के केवल एक पहलू को देखना है। रोकथाम के अतिरिक्त एक कोशिश तो यह भी होनी चाहिए कि बढ़ती जनसंख्या को काम से जोड़ने के लिए काम के साधनों की तलाश की जाय ।

महान् अर्थशास्त्री माल्थस ने अपने समय के अविकसित एवं विकासशील देशों की आबादीजन्य समस्याओं का अध्ययन करते हुए जो निष्कर्ष दिये थे, उन्हें आज हमारे देश में घटित होते हुए पाया जा सकता है।

जनसंख्या बढ़ने से अव्यवस्था भी बढ़ी है। जहाँ साधन सीमित हों और उपभोक्ता असीमित वहाँ स्वाभाविक ही है कि कानून का शासन नहीं चलाया जा सकता। जनसंख्या वृद्धि से लोगों का जीवन स्तर भी गिरा है। छोटी-छोटी चीजों के लिए स्वार्थों की टकराहट ने दंगे की शक्ल लेना प्रारम्भ कर दिया है। व्यक्ति व्यक्ति का असंतोष क्षेत्रीय एवं प्रान्तीय स्वरूप अख्तियार कर गृह युद्ध की आग को शह दे रहा है। अन्तराष्ट्रीय क्षितिज पर भी तनाव बढ़ रहे हैं और यह सब देखते महायुद्ध की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

जनसँख्या नियंत्रण है आवश्यक

आणविक जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाने के लिए परिवार नियोजन जैसे कार्यक्रम को ईमानदारी से लागू किया जाय, बाल-विवाह को सफलतापूर्वक रोका जाय तथा बढ़ती आबादी को काम से जोड़ने के लिए एक तरफ कृषि में आकर्षण पैदा किया जाय और दूसरी तरफ गृह उद्योगों का पूरे देश में जाल बिछा दिया जाय । तभी इस समस्या का कुछ समाधान हो सकता है। असंतुलित आबादी के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं के प्रति आम जनता में व्यापक चेतना का जागरण आज अनिवार्य-सा है।

Leave a Comment