देश के विकास में छात्रों की भूमिका

देश का विकास और विद्यार्थी का आपसी तालमेल अत्यंत ही आवश्यक है. क्योकि छात्र ही हमारे आने वाली पीढ़ी की रीढ़ की हड्डी है. अतएव देश के विकास में छात्रों की भूमिका अत्यंत ही महत्वपूर्ण है.

इनका समुचित विकास समाज का विकास है. यदि छात्रों का बौधिक विकास हुआ तो इससे देश का विकास होगा, इसमें कोई दोराय नहीं है.

छात्र या विद्यार्थी ही किसी देश के भविष्य होते हैं। कारण ही देश की आगामी पीढ़ी के अगुआ या प्रतिनिधि होते हैं। उन्हीं के हाथों में देश की बागडोर आनेवाली होती है। ऐसी हालत में यह स्वाभाविक ही है कि किसी देश के विकास में वहाँ के छात्रों की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो।

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पर, इसके साथ ही यह प्रश्न भी जुड़ा हुआ है कि किस प्रकार के छात्रों की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो सकती है? उन्हीं की तो, जो सही माने में छात्र हों और सही माने में छात्र कौन है ? छात्रों के वेश में जो दिशाभ्रान्त युवक हैं; जो तरह-तरह की मानसिक ग्रन्थियों, निराशा और बेकारी-जैसी कुप्रवृत्तियों के शिकार है, जो पोथे प्रदर्शन, हिंसा, तोड़-फोड़ और अश्लील व्यवहार की नीतियों में ही विश्वास करते है, वैसे छात्र किसी भी देश के क्यों न हों, वहां के विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण रचनात्मक भूमिका अदा नहीं कर सकते ! कारण उनके पास न तो ज्ञान की पूंजी है और न चरित्र की, न अपनी संस्कृति और गौरवमयी परम्पराओं का ज्ञान है और न वर्तमान समस्याओं तथा आनेवाले भविष्य का। गनीमत इतनी ही है कि ऐसे तथाकथित छात्रों की संख्या ‘अपवादतः’ ही है, यद्यपि वह निरन्तर बढ़ती जा रही है।

देश के विकास में सहायक छात्र की विशेषता

हमारे संस्कृति-पुरातन देश में ‘छात्रों’ के समानान्तर दो और भी शब्द हैं ‘विद्यार्थी’ और ‘शिष्य’। जिनके अर्थ निम्न है :

1. ‘छात्र’ शब्द का अर्थ है “शील जिसका छत्र या आवरण हो, वह छात्र कहलाता है”। 

2. ‘विद्यार्थी’ का अर्थ है “विद्या या ज्ञान की प्राप्ति ही जिसका चरम अर्थ या लक्ष्य हो”। 

3. ‘शिष्य’ का अर्थ है “वह, जो गुरु के अनुशासन में रहता है”। 

उपर्युक्त तीनों ही शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हैं, जो छात्र जीवन के तीन महत्त्वपूर्ण पक्षों की ओर संकेत करते हैं। ये तीन महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं- “शील या चरित्र-निर्माण के, विद्योपार्जन के और अनुशासन-पालन के”। 

वस्तुत: जिन युवकों के जीवन में ये तीनों विशेषताएँ मिलती है, वे ही सच्चे अर्थों में छात्र कहे जा सकते हैं और ऐसे छात्र ही अपने राष्ट्र के विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

चरित्र का आभाव देश के विकास में बाधक 

कारण स्पष्ट है। चरित्र के अभाव में किसी देश का विकास नहीं हो सकता। कारण, किसी देश के चरित्र का अर्थ है ‘उसके नागरिकों का चरित्र और नागरिकों के चरित्र की बुनियाद किसी भी देश में छात्र-जीवन में ही पड़ा करती है। चरित्र वान नागरिक जब ज्ञानवान होते हैं तभी साहित्य-विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों में वे कुछ काम कर पाते हैं, कुछ उपलब्धियां हासिल कर पाते हैं। पर, ज्ञानवान होना ‘विद्योपार्जन’ के बिना असंभव है। ‘विद्योपार्जन’ तभी सम्भव है जब उसकी प्राप्ति करनेवाले अपने गुरुजनों (माता-पिता-गुरु एवं सभी हितकामी बड़े जनों) के अनु शासन में रहें, उनकी ‘सीख’ सुनें, उनके द्वारा सुझाये गये मार्ग पर चलें।

हम यह मान लें कि अपनी प्राचीन संस्कृति पर स्वाभिमान रखनेवाले इस धर्मप्राण देश में तथाकथित ‘छात्र’ अपवादस्वरूप है, अन्यथा अधिकांश छात्र ‘शील. वान’, ‘ज्ञानवान’ एवं ‘अनुशासित’ होने की साधना में लगे हैं। ऐसे छात्रों की इस देश के विकास में भूमिका निश्चय ही महत्त्वपूर्ण मानी जायेगी। 

यह विज्ञान-वैभव और प्रतियोगितात्मक होड़ का जमाना है। उद्योग व्यवसाय, शिक्षा, साहित्य, विज्ञान, चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से आगे बढ़ने में लगा हुआ है। ऐसा वह अपने छात्रों के बल पर ही सोच सकता है। कारण वे ही साहस के पुतले हैं, जो कल-कारखाने खड़े कर सकते हैं, नित्य नया अभियान कर सकते हैं और चांद-सितारों पर भी जा सकते हैं। हमारे देश के छात्रों को अपनी इस महत्त्व- गरिमा से परिचित होना है और देश के सर्वांगीण विकास में जुट जाना है ।

ग्रामीणों के जीवन स्तर को सुधारना एक महत्वपूर्ण कदम

हमारा देश विशालता की दृष्टि से एक उपमहादेश ही है। इसमें छोटे-बड़े 5 लाख गाँव हैं, जिनमें 70 करोड़ से भी अधिक की आबादी बसी है। इन गांवों में लाखों गांव ऐसे हैं जो अभी हर दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। वहाँ ज्ञान की रोशनी पहुँचानी है, उन्हें विकास केन्द्रों से जोड़ना है, उनके खेतों में वैज्ञानिक खेती का आलोक फैलाना है, ग्रामवासियों के जीवन स्तर को आधुनिक दृष्टि से समुन्नत करना है और उन्हें इस विशाल राष्ट्र का प्रबुद्ध नागरिक बनाना है। यह अपने आप में हर दृष्टि से महान् काम है और इसका दुवंह भार यहाँ के छात्र ही अपने कंधों पर उठा सकते हैं – वे आज उठायें या कल ! और फिर आज के सुयोग्य छात्रों की कल के भावी कर्णधारों के रूप में जरूरत तो हर क्षेत्र में है।

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