दहेज प्रथा पर निबंध हमें दहेज़ जैसे एक सामाजिक कलंक से रूबरू कराता है. ताकि समाज में फैली दहेज़ प्रथा की कुरीति से सभी को अवगत कराया जा सके.
निश्चय ही यह प्रथा हमारे समाज को कही न कही खोखली बना रही है. जिसका आने वाली पीढियों पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ने वाला है.
दहेज प्रथा पर निबंध | Dowry System Essay In Hindi
जिस भारतीय समाज हम रहते हैं उसकी अनेक खूबियां हैं और अनेक खामियाँ भी। इनमें जो खामियां या बुराइयाँ हैं, उनमें दहेज प्रथा शायद पिछले दिनों सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बनी है।
इससे सम्बद्ध अनेक प्रकार के समाचार सामने आते रहे हैं –
दहेज न लेकर आनेवाली लड़की पर उसके सास-ससुर द्वारा अत्याचार के, अत्याचार-पीड़ित लड़की के आत्महत्या कर लेने के अथवा कुमारी कन्याओं द्वारा दहेज मांगनेवाले लड़कों से विवाह न करने का संकल्प करने के !
सामाजिक संस्थाओं ने इस प्रथा पर खुलकर प्रहार किये हैं और नवयुवकों को इसकी दकिया नूस दलदल से निकलने का आह्वान किया है।
सबसे बढ़कर अपने देश में सरकारी तन्त्र ने महँगाई के बाद इस दहेज़ एक सामाजिक बुराई पर ही सबसे जोरदार हमला किया है।
प्रत्यक्ष रूप से अथवा अप्रत्यक्ष रूप से दहेज लेना और देना, दोनों को कानूनी अपराध ठहरा दिया गया है।
दहेज़ क्यों लिया जाता है ?
प्रारम्भ में विवाह का मूल उद्देश्य था यात्रा एवं सर्वतोभद्र सफल गार्हस्थ्य की कामना। मानव जीवन के नए सफ़र की शुरुआत के सिलसिले में होनेवाले सारे आयोजन इसी उद्देश्य से होते थे और दहेज के रूप में स्वागत-सामग्री भी स्वेच्छया दी जाती थी।
कोई भी सामाजिक परम्परा दूषित रूप में प्रारम्भ नहीं होती।
पहले यह प्रारम्भ होती है, फिरत होती है। फिर वह दूषित तभी होती है जब उसका मूल उद्देश्य मुला दिया जाता है।
दहेज प्रथा अचानक कहीं से नहीं आ गयी, बल्कि बहुत पुरानी है।
दहेज़ प्रथा एक सामाजिक कलंक
वर्तमान दहेज प्रथा बुरी इसलिए है कि उपयुक्त मूल उद्देश्य को सर्वथा मुलाकर चलती है और प्रायः विवाह की शर्त के रूप में प्रकट होती है।
ऐसी स्थिति में क्षति दोनों ही पक्षों की होती है।
कारण, विवाह-सम्बन्ध के उपर्युक्त उद्देश्य से कोई पक्ष सर्वथा अछूता हो, ऐसी बात तो होती नहीं।
उलटे अनेक अभद्र स्थितियाँ पैदा होती हैं।
दहेज देने के बल पर कई अभिभावक अपने सर्वथा नालायक लड़कों का भी विवाह निर्धन परिवार की सर्वगुणसम्पन्न कन्याओं से कर देते हैं।
ऐसा तब भी होता है जब दहेज के बल पर सर्वथा ‘अयोग्य’ कन्याएँ, निर्धन पर ‘सुयोग्य’ वरों के गले मढ़ दी जाती हैं।
ऐसे बेमेल जोड़ों का दाम्पत्य जीवन कभी सुखी नहीं हो सकता है और समाज में भावात्मक स्तर पर अनेक प्रकार की अराजकताएँ फैलती दीखती हैं।
दहेज प्रथा एवं विवाह के मौके पर किये जाने वाले दिखावटी ढकोसलों से दोनों ही परिवारों की आर्थिक सुदृढ़ता को जो क्षति पहुँचती है सो अलग।
दहेज़ प्रथा के मुख्य कारन है अभिभावक
विवाह करानेवाले मुख्य रूप से माता-पिता होते हैं और इन दोनों का इस सामाजिक बुराई को बनाये रखने में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष योगदान रहता है।
माता जो अपनी बेटी के विवाह प्रसंग में इस बुराई से कष्ट पाकर दुर्भाग्य पर आँसू बहाती है, इसे कायम रखने के लिए कम उत्तरदायी नहीं होती ।
कारण, हर लड़के की माता यह चाहती है कि उसके लड़के को अधिक-से-अधिक दहेज मिले !
यदि दहेज में कमी होती है तो घर में आनेवाली बहू पर वही (सास के रूप में) कटु व्यंग्य-वाण बरसाती है और उसकी बेटियाँ (ननदें) इसमें सहायक होती हैं।
इस प्रकार दहेज प्रथा की शिकार जहां नारियां हैं वहाँ वे ही उसको अप्रत्यक्ष रूप से बल भी देती हैं।
हर पिता को भी समझना चाहिए कि अब समय बदल रहा है।
समाज में दहेज लेना कभी गर्व का विषय माना जाता रहा होगा, पर आज ऐसा नहीं है।
अब यह घृणा की नजरों से देखा जाने लगा है।
फिर युवकों की मानसिकता भी बड़ी तेजी से बदली है और बदलती जा रही है।
अधिकांश युवक आज हर कीमत पर पहले एक सुयोग्य ‘जीवनसंगिनी’ चाहते हैं, उसके बाद ही कुछ और !
अतः ‘यदि उनकी इस नयी प्रवृत्ति की सर्वथा उपेक्षा कर दी गयी और दहेज आदि के प्रलो भन में उनके गले कोई ‘गलत’ ढोल डाल दिया गया तो पारिवारिक सुख-संगीत कोलाहलमय हुए बिना नहीं रहेगा।
इतना ही नहीं, जिन्दगी भर उन्हें जो उलाहना मिलेगा सो अलग !
दहेज़ प्रथा कैसे ख़त्म होगी
इन बुराइयों पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार ने जो कानूनी पकड़ मजबूत की है, सो तो ठीक ही है.
पर वस्तुतः ये बुराइयाँ तभी दूर होंगी जब विवाह करानेवाले एवं विवाह करनेवाले, दोनों ही विवाह के वास्तविक महत्व को समझेंगे।
हम शिक्षा प्रसार द्वारा नारियों को इस योग्य कि अपने अधिकार और कर्तव्य को पहचानें और उनमें इस प्रकार की क्षमता पैदा करें कि वे अपने प्रति होनेवाले अत्याचार में योगदान न देकर उसके उन्मूलन के लिए कटिबद्ध हो जायँ !
इसके साथ ही उन्हें इस योग्य बनाया जाय कि शादी के पश्चात् वे अपने जीवन साथी की सही अर्थों में जीवनसंगिनी प्रमाणित हो सकें।
इससे दोनों का जीवन निश्चय ही सुखी हो सकेगा।
पिछले दिनों दहेज प्रथा को जो प्रोत्साहन मिला है, उसके मूल में दो नम्बर के पैसों का भारी हाथ रहा है।
इस प्रथा को समाप्त करने के लिए सरकार ने प्रत्यक्ष. अप्रत्यक्ष, दोनों प्रकार के अंकुश लगाये हैं।
प्रत्यक्ष तौर पर उसने जहां दहेज लेने देने को ही गैरकानूनी घोषित कर दिया है वहाँ काले धन को भी समाप्त करने का कारगर अभियान उठाया है।
दहेज लेनेवाले को सरकारी नोकरी न देने का भी निर्णय किया गया है।
समाज में प्रचलित जातिप्रथा का भी इस कोढ़ को बनाये रखने में बड़ा हाथ है।
उसे भी समूल नष्ट करना आवश्यक है।
वस्तुत: सबसे ज्यादा जरूरी है एक ऐसी मानसिकता का निर्माण, जिसमें दहेज लेना बुरा समझा जाय और दहेज न लेना गौरव का विषय समझा जाय।
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चलते-चलते :
दहेज़ प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay In Hindi) कही न कही लोगो को इस बुरी मानसिकता से निकालने हेतु कारगर है.
अपने संबंधियों में ऐसे लोग जो दहेज़ एक सामाजिक कलंक को अपनाना चाहते है उन्हें ये निबंध पढने को कहे ताकि वे दहेज़ प्रथा जैसी सामाजिक बुराई में अपना हाथ डालने से बचे.
Google DSC के डेवलपर कम्युनिटी को लीड कर चुके शिवम सैंकड़ो लोगों को गूगल क्लाउड, web एवं एंड्राइड जैसी तकनीकों में प्रशिक्षण दे चुकें हैं. तकनिकी छेत्र में शिवम को महारत हासिल है. वे स्टार्टअप, सोशल मीडिया एवं शैक्षणिक विषयों पर टपोरी चौक वेबसाइट के माध्यम से जानकारियां साझा करतें हैं. वर्तमान में शिवम एक इंजिनियर होने के साथ साथ गूगल crowdsource के इन्फ्लुएंसर, टपोरी चौक एवं सॉफ्ट डॉट के संस्थापक इसके अलावा विभिन्न स्टार्टअप में भागीदारी निभा रहें हैं.